Wednesday, 29 May 2013

Neem Ka Ped....

" जेठ महीने की अलसाई सी दोपहर में ,
कई यादें ज़ेहन में करवट लेती हैं ,
यहीं पास में एक नीम का पेड़ खड़ा है,
उसने हमारे बचपन नहीं देखे पर
हमारे अन्दर के बच्चे को लुक छिप के
बाहर आते कई बार देखा है.
हंसी - ठहाको के बीच कॉफ़ी के ठन्डे होते हुए कप,
हमारी हंसी को शाम की हवा पर सवार
दोस्तों के कमरों तक जाते हुए देखा है
नए - पुराने का भेद न जाना,
यह शायद उसने यहाँ के बाशिंदों से ही सीखा है .
हमारे किस्से - कहानियों की,
कभी शिकवे - शिकायतों की और
कभी शर्माते हुए अनकहे लफ़्ज़ों की खुराक पर बड़ा है.

अभी बहुत बरस तो नहीं पर
सैकड़ों लम्हों को जिया है यह
इसकी इतराती डालियों के साए में
न जाने कितने किस्से तमाम हुए,
हवा की छुई हुई इन पत्तियों के पार देखते हुए
न जाने कितनी दोपहर यहाँ शाम हुईं .
और चाँद को भिगो कर चांदनी
हम तक भेजने वाला ये पेड़
आज भी हमारी कड़वाहट को अपने अन्दर समेट
इस जेठ के महीने में भी हमें दोस्ती की
खुशनुमा यादों से भिगोने को खड़ा है. "



"The Curious Case of A Heavenly Pasta"


" As the Smell flows from the spirals in your form,
Wafting in slowly, very slowly,
but deep into my nostrils....
From into my nostrils, it just rises up,
Like a heady feeling,
Pepper hitting me in bits and pieces...
The breath of You that I absorb
seems to seep into the cells of my existence.

For whoever might jest at this have surely
not delighted in your presence.
Oh!! The Heavenly Manna..
You are my soul food.
And once you melt in the mouth...
I know my heart is Smiling !"