Friday, 3 November 2017

किस्सा किमाम का

तो पिताजी से मीठा पान लाने की गुज़ारिश की गई। स्पेशल रिक्वेस्ट थी कि किमाम जरुर पड़वाया जाए। बेटी कई दिनों बाद छुट्टी पर घर आई थी। माँ पिताजी पूरा लाढ़ लड़ा रहे थे। घर में रोज़ नए पकवान बन रहे थे। दिवाली बीत चुकी थी पर मनाई अब जा रही थी। इसी श्रृंखला में पान खाने की बात भी आई।अब बरेली आए और पंडितजी का पान नहीं खाया तो क्या खाक बरेली आए। तो बस हो गई मीठे पान की फरमाइश। तुर्रा ये कि उसमें किमाम ज़रूर डलवाया जाए। किमाम भी इसलिए क्योंकि सुना था कि किमाम ही वो चमत्कार था जो पान को उम्दा बनाता था। तो जी हो गया एक दोपहर किमाम वाला मीठा पान। भई वाह। खोलते से ही क्या खुशबू फैली घर में। आज खाने को मिलेगा असली राजसी पान। मन प्रसन्न। अमिताभ बच्चन और ऐश्वर्या राय के गाने के बोल मन ही मन गुनगुना रहे थे - तेरी बातों में किमाम की खुशबू है। वाह। ये मनमौजी ख्याल मन में हिचकोले ले रहा था और हाथ चाँदी के वर्क से लिपटे पान को ले मुँह की ओर बढ़ रहा था। पान को जैसे ही मुँह में रख कर काटा - उफ्!!! ये क्या! मीठा तो पता नहीं कुछ अलग ही तरह का तीखा लगा। लगा की जैसे धरती पैरों के नीचे से 20 डिग्री खिसक गई हो। ये क्या है! मैने पापा से बड़ी मुश्किल से पूछा। पापा बड़ी मासूमियत से बोले - " किमाम! पान वाला तो बोल रहा था कि इसमें नशा होता है। आपको यही चाहिये ? मैंने भी मन ही मन सोचा कि ज़ोर देकर बोला है लाने को। ले जाता हूँ। अगर नशा हुआ भी तो आज तो बेटी घर पर है, सम्भाल लेंगे।" पान को बकायदा पूरा खाया गया। आखिर इतने मन से मंगवाया था और ये नशा-वशा मुझ पर नहीं काम करता। अब सोच रही हूँ कुछ देर सो जाँऊ। पैर थोड़े लड़खड़ा रहे हैं। 😅😅